वैसे भी विरोध स्वरूप अँधेरा करना वैसा ही है जैसे...
4.
दृश्य बदलने के लिये न तो पहले की तरह अँधेरा करना होता है और न ही पर्दा गिराना होता है.
5.
दीपक ही उजाला रोशनी प्रदान करता है, जब अन्दर से आभा की किरण जागृत हो गयी तो फिर बाहर का स्वांग कोई मायने नहीं रखता, वह एक ढोंग, बनावटी लगने लगेगा, अँधेरे को उजाले से दूर किया जा सकता है, पर उजाले को अँधेरा करना सोचना नहीं पड़ेगा, ये स्वतः विराजमान है, हमारे अन्दर भी,